बुलबुल सुने न क्यूँके कफस में चमन की बात / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’

बुलबुल सुने न क्यूँके कफस में चमन की बात आवार-ए-वतन को लगे खुश वतन की बात ऐश ओ तरब का जिक्र करूँ क्या मैं दोस्तो मुझ गम-ज़दा से पूछिए रंज ओ महन की बात शायद उसी का जिक्र हो हर रह-गुजर में मैं सुनता हूँ गोश-ए-दिल से हर इक मर्द ओ जन की बात ‘जुरअत’… Continue reading बुलबुल सुने न क्यूँके कफस में चमन की बात / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’

ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-गम-ए-यार के तू / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’

ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-गम-ए-यार के तू अब अज़ीय्यत में भला हम हैं गिरफ्तार के तू हम तो कहते थे न आशिक हो अब इतना तो बता जा के हम रोते हैं पहरों पस-ए-दीवार के तू हाथ क्यूँ इश्क-ए-बुताँ से न उठाया तू ने कफ-ए-अफसोस हम अब मलते हैं हर बार के तू वही महफिल… Continue reading ऐ दिला हम हुए पाबंद-ए-गम-ए-यार के तू / क़लंदर बख़्श ‘ज़ुरअत’