बऊ बाज़ार / पंकज पराशर

यहाँ आई तो थी किसी एक की बनकर ही लेकिन बऊ बाज़ार में अब किसी एक की बऊ नहीं रही मैं ओ माँ! अब तो उसकी भी नहीं जिसने सबके सामने कुबूल, कुबूल,कुबूल कहकर कुबूल किया था निकाह और दस सहस्र टका मेहर भी भरी महफ़िल में उसने कितने सब्ज़बाग दिखाए थे तुम्हें बाबा को… Continue reading बऊ बाज़ार / पंकज पराशर

हस्त चिन्ह / पंकज पराशर

बनारस के घाटों को देखते हुए पुरखों के पदचिन्ह पर चलने वालों कभी उनके हस्तचिन्हों को देखकर चलो तो समझ सकोगे हाथ दुनिया को कितना सुंदर बना सकते हैं ख़ैबर दर्रा से आए धनझपटू हाथ जब मचा रहे थे तबाही वे बना रहे थे मुलायम सीढ़ियाँ सुंदर-सुंदर घाट और मिला रहे थे गंगा की निर्मलता… Continue reading हस्त चिन्ह / पंकज पराशर