नैना निपट बंकट छबि अटके। देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके। बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥ टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके। ‘मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के॥
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हरि तुम हरो जन की भीर / मीराबाई
हरि तुम हरो जन की भीर। द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढायो चीर॥ भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर। हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर॥ बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर। दासि ‘मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर॥
नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो / मीराबाई
नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो॥ थांरा देसा में राणा साध नहीं छै, लोग बसे सब कूड़ो। गहणा गांठी राणा हम सब त्यागा, त्याग्यो कररो चूड़ो॥ काजल टीकी हम सब त्याग्या, त्याग्यो है बांधन जूड़ो। मीरा के प्रभु गिरधर नागर बर पायो छै रूड़ो॥ शब्दार्थ :- थांरो = तुम्हारा। देसलड़ो = देश। रंग रूड़ो =विचित्र।… Continue reading नहिं भावै थांरो देसड़लो जी रंगरूड़ो / मीराबाई
पदावली / भाग-6 / मीराबाई
1. पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे। मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे। लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे॥ विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे। ‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे॥ 2. पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे॥ध्रु०॥ कलम धरत मेरा… Continue reading पदावली / भाग-6 / मीराबाई
पदावली / भाग-5 / मीराबाई
1. छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ। ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ। वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ। जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ। अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत। मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥ 2. डर गयोरी मन मोहनपास,… Continue reading पदावली / भाग-5 / मीराबाई
पदावली / भाग-4 / मीराबाई
1. स्याम! मने चाकर राखो जी गिरधारी लाला! चाकर राखो जी। चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं। ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।। चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची। भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।। मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला। ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।। हरे हरे… Continue reading पदावली / भाग-4 / मीराबाई
पदावली / भाग-3 / मीराबाई
1. कालोकी रेन बिहारी। महाराज कोण बिलमायो॥ध्रु०॥ काल गया ज्यां जाहो बिहारी। अही तोही कौन बुलायो॥१॥ कोनकी दासी काजल सार्यो। कोन तने रंग रमायो॥२॥ कंसकी दासी काजल सार्यो। उन मोहि रंग रमायो॥३॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। कपटी कपट चलायो॥४॥ 2. किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥ध्रु०॥ जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥ मोर… Continue reading पदावली / भाग-3 / मीराबाई
पदावली / भाग-2 / मीराबाई
1. आतुर थई छुं सुख जोवांने घेर आवो नंद लालारे॥ध्रु०॥ गौतणां मीस करी गयाछो गोकुळ आवो मारा बालारे॥१॥ मासीरे मारीने गुणका तारी टेव तमारी ऐसी छोगळारे॥२॥ कंस मारी मातपिता उगार्या घणा कपटी नथी भोळारे॥३॥ मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर गुण घणाज लागे प्यारारे॥४॥ 2. राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।… Continue reading पदावली / भाग-2 / मीराबाई
पदावली / भाग-1 / मीराबाई
1. शबरी प्रसंग अच्छे मीठे फल चाख चाख, बेर लाई भीलणी। ऎसी कहा अचारवती, रूप नहीं एक रती। नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी। जूठे फल लीन्हे राम, प्रेम की प्रतीत त्राण। उँच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी। ऎसी कहा वेद पढी, छिन में विमाण चढी। हरि जू सू बाँध्यो हेत, बैकुण्ठ में… Continue reading पदावली / भाग-1 / मीराबाई