लोक-लाज तजि नाची / मीराबाई

मैं तो सांवरे के रंग राची। साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।। गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची। गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।। उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची। मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।

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आय मिलौ मोहि / मीराबाई

राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री। तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री। निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री। पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री। बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री। मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी… Continue reading आय मिलौ मोहि / मीराबाई

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कल नाहिं पड़त जिस / मीराबाई

सखी मेरी नींद नसानी हो। पिवको पंथ निहारत सिगरी, रैण बिहानी हो। सखियन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो। बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय, ऐसी ठानी हो। अंग-अंग ब्याकुल भई मुख, पिय पिय बानी हो। अंतर बेदन बिरहकी कोई, पीर न जानी हो। ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो। मीरा… Continue reading कल नाहिं पड़त जिस / मीराबाई

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दूखण लागे नैन / मीराबाई

दरस बिन दूखण लागे नैन। जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन। सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन। बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन। कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन। मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।

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कोई कहियौ रे / मीराबाई

कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवनकी मनभावन की। आप न आवै लिख नहिं भेजै , बाण पड़ी ललचावन की। ए दोउ नैण कह्यो नहिं मानै, नदियां बहै जैसे सावन की। कहा करूं कछु नहिं बस मेरो, पांख नहीं उड़ जावनकी। मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे, चेरी भै हूँ तेरे दांवन की।

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राखौ कृपानिधान / मीराबाई

अब मैं सरण तिहारी जी, मोहि राखौ कृपा निधान। अजामील अपराधी तारे, तारे नीच सदान। जल डूबत गजराज उबारे, गणिका चढ़ी बिमान। और अधम तारे बहुतेरे, भाखत संत सुजान। कुबजा नीच भीलणी तारी, जाणे सकल जहान। कहं लग कहूँ गिणत नहिं आवै, थकि रहे बेद पुरान। मीरा दासी शरण तिहारी, सुनिये दोनों कान।

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मेरो दरद न जाणै कोय / मीराबाई

हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय। घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय। जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय। सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय। गगन मंडल पर सेज पिया की किस बिध मिलणा होय। दरद की मारी बन-बन डोलूँ बैद मिल्या नहिं कोय।… Continue reading मेरो दरद न जाणै कोय / मीराबाई

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म्हारो अरजी / मीराबाई

तुम सुणो जी म्हारो अरजी। भवसागर में बही जात हूँ काढ़ो तो थारी मरजी। इण संसार सगो नहिं कोई सांचा सगा रघुबरजी।। मात-पिता और कुटम कबीलो सब मतलब के गरजी। मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगावो थारी मरजी।।

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हरो जन की भीर / मीराबाई

हरि तुम हरो जन की भीर। द्रोपदी की लाज राखी, चट बढ़ायो चीर।। भगत कारण रूप नर हरि, धरयो आप समीर।। हिरण्याकुस को मारि लीन्हो, धरयो नाहिन धीर।। बूड़तो गजराज राख्यो, कियौ बाहर नीर।। दासी मीरा लाल गिरधर, चरणकंवल सीर।।

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तुम बिन नैण दुखारा / मीराबाई

म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा। म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा।। म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा।। म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा।। मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा।।… Continue reading तुम बिन नैण दुखारा / मीराबाई

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