भजो रे मन गोविन्दा / मीराबाई

नटवर नागर नन्दा, भजो रे मन गोविन्दा, श्याम सुन्दर मुख चन्दा, भजो रे मन गोविन्दा। तू ही नटवर, तू ही नागर, तू ही बाल मुकुन्दा , सब देवन में कृष्ण बड़े हैं, ज्यूं तारा बिच चंदा। सब सखियन में राधा जी बड़ी हैं, ज्यूं नदियन बिच गंगा, ध्रुव तारे, प्रहलाद उबारे, नरसिंह रूप धरता। कालीदह… Continue reading भजो रे मन गोविन्दा / मीराबाई

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तुमरे दरस बिन बावरी / मीराबाई

दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी-नगरी कैसे मैं तेरी गोकुल नगरी दूर नगरी बड़ी दूर नगरी रात को कान्हा डर माही लागे, दिन को तो देखे सारी नगरी। दूर नगरी… सखी संग कान्हा शर्म मोहे लागे, अकेली तो भूल जाऊँ तेरी डगरी। दूर नगरी… धीरे-धीरे चलूँ तो कमर मोरी लचके झटपट चलूँ तो छलकाए गगरी। दूर… Continue reading तुमरे दरस बिन बावरी / मीराबाई

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भजन बिना नरफीको / मीराबाई

आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको।। घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा, दरसन गोविन्द जी को।।१।। निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को। रतन सिंघासण आपु बिराजैं, मुकुट धरयो तुलसी को।।२।। कुंजन कुंजन फिरत राधिका, सबद सुणत मुरली को। “मीरा” के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको।।३।।

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राम रतन धन पायो / मीराबाई

पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो।। टेक।। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।। जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।। खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो।। सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।। “मीरा” के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जश गायो।।

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म्हारो कांई करसी / मीराबाई

राणोजी रूठे तो म्हारो कांई करसी, म्हे तो गोविन्दरा गुण गास्याँ हे माय।। राणोजी रूठे तो अपने देश रखासी, म्हे तो हरि रूठ्यां रूठे जास्याँ हे माय। लोक-लाजकी काण न राखाँ, म्हे तो निर्भय निशान गुरास्याँ हे माय। राम नाम की जहाज चलास्याँ, म्हे तो भवसागर तिर जास्याँ हे माय। हरिमंदिर में निरत करास्याM, म्हे… Continue reading म्हारो कांई करसी / मीराबाई

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सुभ है आज घरी / मीराबाई

तेरो कोई नहिं रोकणहार, मगन होइ मीरा चली।। लाज सरम कुल की मरजादा, सिरसै दूर करी। मान-अपमान दोऊ धर पटके, निकसी ग्यान गली।। ऊँची अटरिया लाल किंवड़िया, निरगुण-सेज बिछी। पंचरंगी झालर सुभ सोहै, फूलन फूल कली। बाजूबंद कडूला सोहै, सिंदूर मांग भरी। सुमिरण थाल हाथ में लीन्हों, सौभा अधिक खरी।। सेज सुखमणा मीरा सौहै, सुभ… Continue reading सुभ है आज घरी / मीराबाई

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सांचो प्रीतम / मीराबाई

मैं गिरधर के घर जाऊँ। गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊँ।। रैण पड़ै तबही उठ जाऊँ भोर भये उठिआऊँ। रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त्यूं ताहि रिझाऊँ।। जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊँ। मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊँ। जहाँ बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊँ। मीरा… Continue reading सांचो प्रीतम / मीराबाई

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चाकर राखो जी / मीराबाई

स्याम! मने चाकर राखो जी गिरधारी लाला! चाकर राखो जी। चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं। ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।। चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची। भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।। मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला। ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।। हरे हरे नित… Continue reading चाकर राखो जी / मीराबाई

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साजन घर आया हो / मीराबाई

सहेलियाँ साजन घर आया हो। बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो।। रतन करूँ नेवछावरी ले आरति साजूं हो। पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो।। पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो। पिया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो। हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो। मरा सखी के… Continue reading साजन घर आया हो / मीराबाई

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होरी खेलत हैं गिरधारी / मीराबाई

होरी खेलत हैं गिरधारी। मुरली चंग बजत डफ न्यारो। संग जुबती ब्रजनारी।। चंदन केसर छिड़कत मोहन अपने हाथ बिहारी। भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग स्यामा प्राण पियारी। गावत चार धमार राग तहं दै दै कल करतारी।। फाग जु खेलत रसिक सांवरो बाढ्यौ रस ब्रज भारी। मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया मोहनलाल बिहारी।।

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