स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो / मीराबाई

राग बिहाग स्याम मोरी बांहड़ली जी गहो। या भवसागर मंझधार में थे ही निभावण हो॥ म्हाने औगण घणा रहै प्रभुजी थे ही सहो तो सहो। मीरा के प्रभु हरि अबिनासी लाज बिरद की बहो॥ शब्दार्थ :- थे =तुम। घणा छै = बहुत है। बहो = वहन करो, रखो।

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तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी / मीराबाई

राग दरबारी-ताल तिताला तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी॥ भवसागर में बही जात हौं, काढ़ो तो थारी मरजी। इण संसार सगो नहिं कोई, सांचा सगा रघुबरजी॥ मात पिता औ कुटुम कबीलो सब मतलब के गरजी। मीरा की प्रभु अरजी सुण लो चरण लगाओ थारी मरजी॥ शब्दार्थ :-म्हारी =मेरी। काढ़ो =निकाढ़ लो, निकाल ले। इण =यह। गरजी… Continue reading तुम सुणौ दयाल म्हारी अरजी / मीराबाई

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थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ / मीराबाई

राग प्रभाती थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ,मैं हाजिर-नाजिर कद की खड़ी॥ साजणियां दुसमण होय बैठ्या, सबने लगूं कड़ी। तुम बिन साजन कोई नहिं है, डिगी नाव मेरी समंद अड़ी॥ दिन नहिं चैन रैण नहीं निदरा, सूखूं खड़ी खड़ी। बाण बिरह का लग्या हिये में, भूलुं न एक घड़ी॥ पत्थर की तो अहिल्या तारी बन के… Continue reading थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ / मीराबाई

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म्हारे जनम-मरण साथी थांने नहीं बिसरूं दिनराती / मीराबाई

राग प्रभावती म्हारे जनम-मरण साथी थांने नहीं बिसरूं दिनराती॥ थां देख्या बिन कल न पड़त है, जाणत मेरी छाती। ऊंची चढ़-चढ़ पंथ निहारूं रोय रोय अंखियां राती॥ यो संसार सकल जग झूठो, झूठा कुलरा न्याती। दोउ कर जोड्यां अरज करूं छूं सुण लीज्यो मेरी बाती॥ यो मन मेरो बड़ो हरामी ज्यूं मदमाती हाथी। सतगुर हस्त… Continue reading म्हारे जनम-मरण साथी थांने नहीं बिसरूं दिनराती / मीराबाई

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साजन घर आओनी मीठा बोला / मीराबाई

राग पीलू साजन घर आओनी मीठा बोला॥ कदकी ऊभी मैं पंथ निहारूं थारो, आयां होसी मेला॥ आओ निसंक, संक मत मानो, आयां ही सुक्ख रहेला॥ तन मन वार करूं न्यौछावर, दीज्यो स्याम मोय हेला॥ आतुर बहुत बिलम मत कीज्यो, आयां हो रंग रहेला॥ तुमरे कारण सब रंग त्याग्या, काजल तिलक तमोला॥ तुम देख्या बिन कल… Continue reading साजन घर आओनी मीठा बोला / मीराबाई

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घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै / मीराबाई

राग काफी घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै॥ दीपक जोय कहा करूं सजनी, पिय परदेस रहावै। सूनी सेज जहर ज्यूं लागे, सिसक-सिसक जिय जावै॥ नैण निंदरा नहीं आवै॥ कदकी उभी मैं मग जोऊं, निस-दिन बिरह सतावै। कहा कहूं कछु कहत न आवै, हिवड़ो अति उकलावै॥ हरि कब दरस दिखावै॥ ऐसो है कोई… Continue reading घर आंगण न सुहावै, पिया बिन मोहि न भावै / मीराबाई

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म्हारी सुध ज्यूं जानो त्यूं लीजो / मीराबाई

राग कोसी म्हारी सुध ज्यूं जानो त्यूं लीजो॥ पल पल ऊभी पंथ निहारूं, दरसण म्हाने दीजो। मैं तो हूं बहु औगुणवाली, औगण सब हर लीजो॥ मैं तो दासी थारे चरण कंवलकी, मिल बिछड़न मत कीजो। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरि चरणां चित दीजो॥ शब्दार्थ :- ऊभी =खड़ी। म्हाने = मुझे। औगण =अवगुण, दोष। कंवल… Continue reading म्हारी सुध ज्यूं जानो त्यूं लीजो / मीराबाई

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सखी, मेरी नींद नसानी हो / मीराबाई

राग आनंद भैरों सखी, मेरी नींद नसानी हो। पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो॥ सखिअन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो। बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो॥ अंग अंग व्याकुल भई मुख पिय पिय बानी हो। अंतरबेदन बिरह की कोई पीर न जानी हो॥ ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली… Continue reading सखी, मेरी नींद नसानी हो / मीराबाई

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पिया मोहि दरसण दीजै हो / मीराबाई

राग देस पिया मोहि दरसण दीजै हो। बेर बेर मैं टेरहूं, या किरपा कीजै हो॥ जेठ महीने जल बिना पंछी दुख होई हो। मोर असाढ़ा कुरलहे घन चात्रा सोई हो॥ सावण में झड़ लागियो, सखि तीजां खेलै हो। भादरवै नदियां वहै दूरी जिन मेलै हो॥ सीप स्वाति ही झलती आसोजां सोई हो। देव काती में… Continue reading पिया मोहि दरसण दीजै हो / मीराबाई

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पपइया रे, पिव की वाणि न बोल / मीराबाई

राग सावनी कल्याण पपइया रे, पिव की वाणि न बोल। सुणि पावेली बिरहुणी रे, थारी रालेली पांख मरोड़॥ चोंच कटाऊं पपइया रे, ऊपर कालोर लूण। पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण॥ थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेंला आज। चोंच मंढ़ाऊं थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज॥ प्रीतम कूं पतियां… Continue reading पपइया रे, पिव की वाणि न बोल / मीराबाई

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