मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम / मीराबाई

मनुवा बाबारे सुमरले मन सिताराम॥ध्रु०॥ बडे बडे भूपती सुलतान उनके। डेरे भय मैदान॥१॥ लंकाके रावण कालने खाया। तूं क्या है कंगाल॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर लाल। भज गोपाल त्यज जंजाल॥३॥

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मदन गोपाल नंदजीको लाल प्रभुजी / मीराबाई

मदन गोपाल नंदजीको लाल प्रभुजी॥ध्रु०॥ बालपनकी प्रीत बिखायो। नवनीत धरियो नंदलाल॥१॥ कुब्जा हीनकी तुम पत राखो। हम ब्रीज नारी भई बेहाल॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हम जपे यही जपमाल॥३॥

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भज मन शंकर भोलानाथ भज मन / मीराबाई

भज मन शंकर भोलानाथ भज मन॥ध्रु०॥ अंग विभूत सबही शोभा। ऊपर फुलनकी बास॥१॥ एकहि लोटाभर जल चावल। चाहत ऊपर बेलकी पात॥२॥ मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर। पूजा करले समजे आपहि आप॥३॥

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जल कैशी भरुं जमुना भयेरी / मीराबाई

जल कैशी भरुं जमुना भयेरी॥ध्रु०॥ खडी भरुं तो कृष्ण दिखत है। बैठ भरुं तो भीजे चुनडी॥१॥ मोर मुगुटअ पीतांबर शोभे। छुम छुम बाजत मुरली॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चणरकमलकी मैं जेरी॥३॥

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कोई देखोरे मैया / मीराबाई

कोई देखोरे मैया। शामसुंदर मुरलीवाला॥ध्रु०॥ जमुनाके तीर धेनु चरावत। दधी घट चोर चुरैया॥१॥ ब्रिंदाजीबनके कुंजगलीनमों। हमकू देत झुकैया॥२॥ ईत गोकुल उत मथुरा नगरी। पकरत मोरी भय्या॥३॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बजैया॥४॥

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तैं मेरी गेंद चुराई / मीराबाई

तैं मेरी गेंद चुराई। ग्वालनारे॥ध्रु०॥ आबहि आणपेरे तोरे आंगणा। आंगया बीच छुपाई॥१॥ ग्वाल बाल सब मिलकर जाये। जगरथ झोंका आई॥२॥ साच कन्हैया झूठ मत बोले। घट रही चतुराई॥३॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलजाई॥४॥

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ये ब्रिजराजकूं अर्ज मेरी / मीराबाई

ये ब्रिजराजकूं अर्ज मेरी। जैसी राम हमारी॥ध्रु०॥ मोर मुगुट श्रीछत्र बिराजे। कुंडलकी छब न्यारी॥१॥ हारी हारी पगया केशरी जामा। उपर फुल हाजारी॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल बलिहारी॥३॥

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हरी तुम कायकू प्रीत लगाई / मीराबाई

हरी तुम कायकू प्रीत लगाई॥ध्रु०॥ प्रीत लगाई परम दुःख दीनो। कैशी लाज न आई॥१॥ गोकुल छांड मथुरेकु जाये। वामें कोन बराई॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। तुमकू नंद दुवाई॥३॥

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कीत गयो जादु करके नो पीया / मीराबाई

कीत गयो जादु करके नो पीया॥ध्रु०॥ नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥ मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥ मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥

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पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे / मीराबाई

पतीया मैं कैशी लीखूं, लीखये न जातरे॥ध्रु०॥ कलम धरत मेरा कर कांपत। नयनमों रड छायो॥१॥ हमारी बीपत उद्धव देखी जात है। हरीसो कहूं वो जानत है॥२॥ मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरणकमल रहो छाये॥३॥

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