चिंता / भाग १ / कामायनी / जयशंकर प्रसाद

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह। नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन, एक तत्व की ही प्रधानता, कहो उसे जड़ या चेतन। दूर दूर तक विस्तृत था हिम, स्तब्ध उसी के हृदय समान, नीरवता-सी शिला-चरण से,… Continue reading चिंता / भाग १ / कामायनी / जयशंकर प्रसाद