अपने ही ताप से पिघला बरस गया आग की फुहार-सा सूरज दहकते कोलतार पर भागते नंगे पैरों को पता ही नहीं चला मोटर सवार ने कहा पैदल चलो तो लू नहीं लगती ! नंगे पैर ने नहीं सुना– वर्ना कभी भी वो मोटर और लू से बदल लेता रोज़-रोज़ जी पाने की भट्टी पर सिकता… Continue reading सूरज / इन्दु जैन
Category: Indu Jain
मौसम / इन्दु जैन
ये कैसा मौसम है कि छाँह देने वाले पेड़ की शहतीरों से कमरे में ख़ून टपकने लगा कि कविता पुरस्कृत होते ही मेरी अपनी नज़रों में ख़ुद पर प्रश्नचिन्ह लग गया ।