सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा / बशीर बद्र

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िन्दगी ने कह दिया तू नहीं मेरा, तो कोई दूसरा हो जाएगा मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी… Continue reading सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा / बशीर बद्र

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में / बशीर बद्र

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में और जाम टूटेंगे इस शराब-ख़ाने में मौसमों के आने में मौसमों के जाने में हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में फ़ाख़्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती कौन… Continue reading लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में / बशीर बद्र

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला / बशीर बद्र

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला बहुत अजीब है ये क़ुरबतों की… Continue reading मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला / बशीर बद्र

कोई न जान सका वो कहाँ से आया था / बशीर बद्र

कोई न जान सका वो कहाँ से आया था और उसने धुप से बादल को क्यों मिलाया था यह बात लोगों को शायद पसंद आयी नहीं मकान छोटा था लेकिन बहुत सजाया था वो अब वहाँ हैं जहाँ रास्ते नहीं जाते मैं जिसके साथ यहाँ पिछले साल आया था सुना है उस पे चहकने लगे… Continue reading कोई न जान सका वो कहाँ से आया था / बशीर बद्र

किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा / बशीर बद्र

किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊँगा हयातो-मौत फ़िराको-विसाल सब यकजा मैं एक रात में कितने दिये जलाऊँगा पला बढ़ा हूँ अभी तक इन्हीं अन्धेरों में मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊँगा मिरे मिज़ाज की ये मादराना फ़ितरत है सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊँगा तुम एक… Continue reading किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा / बशीर बद्र

चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ / बशीर बद्र

चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ मैं न इस बात पे नाज़ाँ हूँ न शर्मिंदा हूँ दफ़न हो जाएगा जो सैंकड़ों मन मिट्टी में ग़ालिबन मैं भी उसी शहर का बाशिन्दा हूँ ज़िंदगी तू मुझे पहचान न पाई लेकिन लोग कहते हैं कि मैं तेरा नुमाइन्दा हूँ फूल सी क़ब्र से अक्सर ये… Continue reading चाँद का टुकड़ा न सूरज का नुमाइन्दा हूँ / बशीर बद्र

गुलों की तरह हमने जिंदगी को इस कदर जाना / बशीर बद्र

गुलों की तरह हमने ज़िन्दगी को इस क़दर जाना किसी की ज़ुल्फ़ में एक रात सोना और बिखर जाना अगर ऐसे गये तो ज़िन्दगी पर हर्फ़ आयेगा हवाओं से लिपटना, तितलियों को चूम कर जाना धुनक के रखा दिया था बादलों को जिन परिन्दों ने उन्हें किस ने सिखाया अपने साये से भी डर जाना… Continue reading गुलों की तरह हमने जिंदगी को इस कदर जाना / बशीर बद्र

कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है / बशीर बद्र

कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है ये दिया अपने अँधेरे में घुटा जाता है सब समझते हैं वही रात की क़िस्मत होगा जो सितारा कि बुलन्दी पे नज़र आता है बिल्डिंगें लोग नहीं हैं जो कहीं भाग सकें रोज़ इन्सानों का सैलाब बढ़ा जाता है मैं इसी खोज में बढ़ता ही चला… Continue reading कोई जाता है यहाँ से न कोई आता है / बशीर बद्र

शबनम हूँ सुर्ख फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं / बशीर बद्र

शबनम हूँ सुर्ख़ फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं दिल मोम और धूप में बैठा हुआ हूँ मैं कुछ देर बाद राख मिलेगी तुम्हें यहाँ लौ बन के इस चराग़ से लिपटा हुआ हूँ मैं दो सख़्त खुश्क़ रोटियां कब से लिए हुए पानी के इन्तिज़ार में बैठा हुआ हूँ मैं लाठी उठा के घाट… Continue reading शबनम हूँ सुर्ख फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं / बशीर बद्र

मुझे भुलाये कभी याद करके रोये भी / बशीर बद्र

मुझे भुलाये कभी याद कर के रोये भी वो अपने आप को बिखराये और पिरोये भी बहुत ग़ुबार भरा था दिलों में दोनों के मगर वो एक ही बिस्तर पे रात सोये भी बहुत दिनों से नहाये नहीं हैं आँगन में कभी तो राह की बारिश हमें भिगोये भी ये तुमसे किसने कहा रात से… Continue reading मुझे भुलाये कभी याद करके रोये भी / बशीर बद्र