स्थापना /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

[नेपथ्य से उद्घोषणा तथा मंच पर नर्त्तक के द्वारा उपयुक्त भावनाट्य का प्रदर्शन। शंख-ध्वनि के साथ पर्दा खुलता है तथा मंगलाचरण के साथ-साथ नर्त्तक नमस्कार-मुद्रा प्रदर्शित करता है। उद्घोषणा के साथ-साथ उसकी मुद्राएँ बदलती जाती हैं।] मंगलाचरण नारायणम् नमस्कृत्य नरम् चैव नरोत्तमम्। देवीम् सरस्वतीम् व्यासम् ततो जयमुदीयरेत्। उद्घोषणा जिस युग का वर्णन इस कृति में… Continue reading स्थापना /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

आद्यन्त / धर्मवीर भारती

1 जिन्दगी की डाल पर कण्टकों के जाल पर-काश एक फूल-सा मैं भी अगर फूलता ! कोयलों से सीखता जिन्दगी के मधुर गीत बुलबुलों से पालता हिलमिल कर प्रेम प्रीत पत्तियों के संग झूम तितलियों के पंख चूम चाँदी भरी रातों में- चन्द्र किरण डोर का डाल कर मृदुल हिण्डोला। कलियों के संग-संग धीमे-धीमे झूलता… Continue reading आद्यन्त / धर्मवीर भारती

रवीन्द्र से / धर्मवीर भारती

[रवीन्द्र जन्मशताब्दी के वर्ष : सोनारतरी (सोने की नाव) तथा उनकी अन्य कई प्यारी कविताएँ पढ़कर] नहीं नहीं कभी नहीं थी, कोई नौका सोने की ! सिर्फ दूर तक थी बालू, सिर्फ दूर तक अँधियारा वह थी क्या अपनी ही प्यास, कहा था जिसे जलधारा ? नहीं दिखा कोई भी पाल, नहीं उठी कोई पतवार… Continue reading रवीन्द्र से / धर्मवीर भारती

उसी ने रचा है / धर्मवीर भारती

नहीं-वह नहीं जो कुछ मैंने जिया बल्कि वह सब-वह सब जिसके द्वारा मैं जिया गया नहीं, वह नहीं जिसको मैंने ही चाहा, अवगाहा, उगाहा- जो मेरे ही अनवरत प्रयासों से खिला बल्कि वह जो अनजाने ही किसी पगडंडी पर अपने-आप मेरे लिए खिला हुआ मिला वह भी नहीं जिसके सिर पंख बाँध-बाँध सूर्य तक उड़ा… Continue reading उसी ने रचा है / धर्मवीर भारती

कन-कन तुम्हें जी कर / धर्मवीर भारती

अतल गहराई तक तुम्ही में डूब कर मिला हुआ अकेलापन, अँजुरी भर-भर कर तुम्हें पाने के असहनीय सुख को सह जाने की थकान, और शाम गहराती हुई छाती हुई तन मन पर कन-कन तुम्हें जी कर पी कर बूँद-बूँद तुम्हें-गाढ़ी एक तृप्ति की उदासी….. और तीसरे पहर की तिरछी धूप का सिंकाव और गहरी तन्मयता… Continue reading कन-कन तुम्हें जी कर / धर्मवीर भारती

क्योंकि सपना है अभी भी / धर्मवीर भारती

…क्योंकि सपना है अभी भी इसलिए तलवार टूटी अश्व घायल कोहरे डूबी दिशाएं कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध धूमिल किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी …क्योंकि सपना है अभी भी! तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा जब कि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस… Continue reading क्योंकि सपना है अभी भी / धर्मवीर भारती

फागुन की शाम / धर्मवीर भारती

घाट के रस्ते उस बँसवट से इक पीली-सी चिड़िया उसका कुछ अच्छा-सा नाम है! मुझे पुकारे! ताना मारे, भर आएँ, आँखड़ियाँ! उन्मन, ये फागुन की शाम है! घाट की सीढ़ी तोड़-तोड़ कर बन-तुलसा उग आयीं झुरमुट से छन जल पर पड़ती सूरज की परछाईं तोतापंखी किरनों में हिलती बाँसों की टहनी यहीं बैठ कहती थी… Continue reading फागुन की शाम / धर्मवीर भारती

अगर डोला कभी इस राह से गुजरे / धर्मवीर भारती

अगर डोला कभी इस राह से गुजरे कुवेला, यहाँ अम्बवा तरे रुक एक पल विश्राम लेना, मिलो जब गाँव भर से बात कहना, बात सुनना भूल कर मेरा न हरगिज नाम लेना अगर कोई सखी कुछ जिक्र मेरा छेड़ बैठे, हँसी में टाल देना बात, आँसू थाम लेना शाम बीते, दूर जब भटकी हुई गायें… Continue reading अगर डोला कभी इस राह से गुजरे / धर्मवीर भारती

उदास तुम / धर्मवीर भारती

तुम कितनी सुन्दर लगती हो जब तुम हो जाती हो उदास ! ज्यों किसी गुलाबी दुनिया में सूने खँडहर के आसपास मदभरी चांदनी जगती हो ! मुँह पर ढँक लेती हो आँचल ज्यों डूब रहे रवि पर बादल, या दिन-भर उड़कर थकी किरन, सो जाती हो पाँखें समेट, आँचल में अलस उदासी बन ! दो… Continue reading उदास तुम / धर्मवीर भारती

प्रार्थना की कड़ी / धर्मवीर भारती

प्रार्थना की एक अनदेखी कड़ी बाँध देती है, तुम्हारा मन, हमारा मन, फिर किसी अनजान आशीर्वाद में-डूबन मिलती मुझे राहत बड़ी! प्रात सद्य:स्नात कन्धों पर बिखेरे केश आँसुओं में ज्यों धुला वैराग्य का सन्देश चूमती रह-रह बदन को अर्चना की धूप यह सरल निष्काम पूजा-सा तुम्हारा रूप जी सकूँगा सौ जनम अँधियारियों में, यदि मुझे… Continue reading प्रार्थना की कड़ी / धर्मवीर भारती