कनुप्रिया – तीसरा गीत / धर्मवीर भारती

घाट से लौटते हुए तीसरे पहर की अलसायी बेला में मैं ने अक्सर तुम्हें कदम्ब के नीचे चुपचाप ध्यानमग्न खड़े पाया मैं न कोई अज्ञात वनदेवता समझ कितनी बार तुम्हें प्रणाम कर सिर झुकाया पर तुम खड़े रहे अडिग, निर्लिप्त, वीतराग, निश्चल! तुम ने कभी उसे स्वीकारा ही नहीं ! दिन पर दिन बीतते गये… Continue reading कनुप्रिया – तीसरा गीत / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – दूसरा गीत / धर्मवीर भारती

यह जो अकस्मात् आज मेरे जिस्म के सितार के एक-एक तार में तुम झंकार उठे हो- सच बतलाना मेरे स्वर्णिम संगीत तुम कब से मुझ में छिपे सो रहे थे। सुनो, मैं अक्सर अपने सारे शरीर को- पोर-पोर को अवगुण्ठन में ढँक कर तुम्हारे सामने गयी मुझे तुम से कितनी लाज आती थी, मैं ने… Continue reading कनुप्रिया – दूसरा गीत / धर्मवीर भारती

कनुप्रिया – पहला गीत / धर्मवीर भारती

ओ पथ के किनारे खड़े छायादार पावन अशोक-वृक्ष तुम यह क्यों कहते हो कि तुम मेरे चरणों के स्पर्श की प्रतीक्षा में जन्मों से पुष्पहीन खड़े थे तुम को क्या मालूम कि मैं कितनी बार केवल तुम्हारे लिए-धूल में मिली हूँ धरती में गहरे उतर जड़ों के सहारे तु्म्हारे कठोर तने के रेशों में कलियाँ… Continue reading कनुप्रिया – पहला गीत / धर्मवीर भारती

मुनादी / धर्मवीर भारती

खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का हुकुम शहर कोतवाल का… हर खासो-आम को आगह किया जाता है कि खबरदार रहें और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से कुंडी चढा़कर बन्द कर लें गिरा लें खिड़कियों के परदे और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें क्योंकि एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज… Continue reading मुनादी / धर्मवीर भारती

पुराना क़िला / धर्मवीर भारती

[भारत के स्वातन्त्र्योत्तर इतिहास का सबसे पहला और सबसे बड़ा हादसा था-अक्तूबर 1962 में चीन का आक्रमण। उसने न केवल सारे देश को हतप्रभ कर दिया था, हमारी दु:खद पराजय ने अब तक पाले हुए सारे सपनों के मोहजाल को छिन्न-भिन्न कर दिया था और मानो एक ही चोट में नेहरू युग की सारी विसंगतियाँ… Continue reading पुराना क़िला / धर्मवीर भारती

पंचम अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

कृपाचार्य – यह क्या किया, अश्वत्थामा। यह क्या किया? अश्वत्थामा – पता नहीं मैंने क्या किया, मातुल मैंने क्या किया! क्या मैंने कुछ किया? कृतवर्मा – कृपाचार्य भय लगता है मुझको इस अश्वत्थामा से! (कृपाचार्य अश्वत्थामा को बिठाकर, उसका कमरबन्द ढीला करते हैं। माथे का पसीना पोंछते हैं।) कृपाचार्य – बैठो विश्राम करो तुमने कुछ… Continue reading पंचम अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

चतुर्थ अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

अश्वत्थामा – यह मेरा धनुष है धनुष अश्वत्थामा का जिसकी प्रत्यंचा खुद द्रोण ने चढ़ाई थी आज जब मैंने दुर्योधन को देखा नि:शस्त्र, दीन आँखों में आँसू भरे मैंने मरोड़ दिया अपने इस धनुष को। कुचले हुए साँप-सा भयावह किन्तु शक्तिहीन मेरा धनुष है यह जैसा है मेरा मन किसके बल पर लूँगा मैं अब… Continue reading चतुर्थ अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

तृतीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

कथा-गायन- संजय तटस्थद्रष्टा शब्दों का शिल्पी है पर वह भी भटक गया असंजस के वन में दायित्व गहन, भाषा अपूर्ण, श्रोता अन्धे पर सत्य वही देगा उनको संकट-क्षण में वह संजय भी इस मोह-निशा से घिर कर है भटक रहा जाने किस कंटक-पथ पर (पर्दा उठने पर वनपथ का दृश्य। कोई योद्धा बगल में अस्त्र… Continue reading तृतीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

द्वितीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

धृतराष्ट्र- विदुर- कौन संजय? नहीं! विदुर हूँ महाराज। विह्वल है सारा नगर आज बचे-खुचे जो भी दस-बीस लोग कौरव नगरी में हैं अपलक नेत्रों से कर रहे प्रतीक्षा हैं संजय की। (कुछ क्षण महाराज के उत्तर की प्रतीक्षा कर) महाराज चुप क्यों हैं इतने आप माता गान्धारी भी मौन हैं! धृतराष्ट्र- विदुर! जीवन में प्रथम… Continue reading द्वितीय अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

पहला अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती

कौरव नगरी तीन बार तूर्यनाद के उपरान्त कथा-गायन टुकड़े-टुकड़े हो बिखर चुकी मर्यादा उसको दोनों ही पक्षों ने तोड़ा है पाण्डव ने कुछ कम कौरव ने कुछ ज्यादा यह रक्तपात अब कब समाप्त होना है यह अजब युद्ध है नहीं किसी की भी जय दोनों पक्षों को खोना ही खोना है अन्धों से शोभित था… Continue reading पहला अंक /अन्धा युग/ धर्मवीर भारती