हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी हिरन की पीठ पर बैठे परिन्दे की शरारत सी वो जैसे सर्दियों में गर्म कपड़े दे फ़क़ीरों को लबों पे मुस्कुराहट थी मगर कैसी हिक़ारत सी उदासी पतझड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकती पहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी सजाये बाज़ुओं पर बाज़ वो… Continue reading हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में / बशीर बद्र
Category: Hindi-Urdu Poets
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा / बशीर बद्र
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा किश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा बेवक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ये फूल मुझे कोई विरासत में… Continue reading आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा / बशीर बद्र
कोई फूल धूप की पत्तियों में / बशीर बद्र
कोई फूल धूप की पत्तियों में, हरे रिबन से बंधा हुआ । वो ग़ज़ल का लहजा नया-नया, न कहा हुआ न सुना हुआ । जिसे ले गई अभी हवा, वे वरक़ था दिल की किताब का, कही आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ । कई मील रेत को काटकर, कोई मौज फूल… Continue reading कोई फूल धूप की पत्तियों में / बशीर बद्र
यूँ ही बेसबब न फिरा करो / बशीर बद्र
यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा तुम्हें… Continue reading यूँ ही बेसबब न फिरा करो / बशीर बद्र
कनुप्रिया – समापन / धर्मवीर भारती
क्या तुमने उस वेला मुझे बुलाया था कनु ? लो, मैं सब छोड़-छाड़ कर आ गयी ! इसी लिए तब मैं तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी, इसी लिए मैंने अस्वीकार कर दिया था तुम्हारे गोलोक का कालावधिहीन रास, क्योंकि मुझे फिर आना था ! तुमने मुझे पुकारा था न मैं आ गई… Continue reading कनुप्रिया – समापन / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – समुद्र-स्वप्न / धर्मवीर भारती
जिसकी शेषशय्या पर तुम्हारे साथ युगों-युगों तक क्रीड़ा की है आज उस समुद्र को मैंने स्वप्न में देखा कनु! लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं – और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार… Continue reading कनुप्रिया – समुद्र-स्वप्न / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – शब्द : अर्थहीन / धर्मवीर भारती
पर इस सार्थकता को तुम मुझे कैसे समझाओगे कनु? शब्द, शब्द, शब्द……. मेरे लिए सब अर्थहीन हैं यदि वे मेरे पास बैठकर मेरे रूखे कुन्तलों में उँगलियाँ उलझाए हुए तुम्हारे काँपते अधरों से नहीं निकलते शब्द, शब्द, शब्द……. कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व…….. मैंने भी गली-गली सुने हैं ये शब्द अर्जुन ने चाहे इनमें कुछ भी… Continue reading कनुप्रिया – शब्द : अर्थहीन / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – एक प्रश्न / धर्मवीर भारती
अच्छा, मेरे महान् कनु, मान लो कि क्षण भर को मैं यह स्वीकार लूँ कि मेरे ये सारे तन्मयता के गहरे क्षण सिर्फ भावावेश थे, सुकोमल कल्पनाएँ थीं रँगे हुए, अर्थहीन, आकर्षक शब्द थे – मान लो कि क्षण भर को मैं यह स्वीकार कर लूँ कि पाप-पुण्य, धर्माधर्म, न्याय-दण्ड क्षमा-शील वाला यह तुम्हारा युद्ध… Continue reading कनुप्रिया – एक प्रश्न / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – अमंगल छाया / धर्मवीर भारती
घाट से आते हुए कदम्ब के नीचे खड़े कनु को ध्यानमग्न देवता समझ, प्रणाम करने जिस राह से तू लौटती थी बावरी आज उस राह से न लौट उजड़े हुए कुंज रौंदी हुई लताएँ आकाश पर छायी हुई धूल क्या तुझे यह नहीं बता रहीं कि आज उस राह से कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ… Continue reading कनुप्रिया – अमंगल छाया / धर्मवीर भारती
कनुप्रिया – उसी आम के नीचे / धर्मवीर भारती
उस तन्मयता में तुम्हारे वक्ष में मुँह छिपा कर लजाते हुए मैं ने जो-जो कहा था पता नहीं उस में कुछ अर्थ था भी या नहीं : आम-मंजरियों से भरी हुई मांग के दर्प में मैं ने समस्त जगत् को अपनी बेसुधी के एक क्षण में लीन करने का जो दावा किया था – पता… Continue reading कनुप्रिया – उसी आम के नीचे / धर्मवीर भारती