इन अलसाई आँखों ने रात भर जाग कर खरीदे हैं कुछ बंजारा सपने सालों से पोस्टपोन की गई उम्मीदें उफान पर हैं कि पूरे होने का यही वक्त तय हुआ होगा शायद अभी नन्हीं उँगलियों से जरा ढीली ही हुई है इन हाथों की पकड़ कि थिरक रहे हैं वे कीबोर्ड पर उड़ाने लगे हैं… Continue reading चालीस साला औरतें / अंजू शर्मा
Category: Anju Sharma
चुनाव से ठीक एक रात पहले / अंजू शर्मा
क्या आपकी कलम भी ठिठकी है मेरे समय के कवियों, कहानीकारों और लेखकों क्या आपको भी ये लगता है इस विरोधाभासी समय में कलम की नोंक पर टँगे हुए कुछ शब्द जम गए हैं जबकि रक्तचाप सामान्य से कुछ बिंदु ऊपर है, ये कविताएँ लिखे जाने का समय तो बिल्कुल नहीं है और तब जबकि… Continue reading चुनाव से ठीक एक रात पहले / अंजू शर्मा
एक स्त्री आज जाग गई है / अंजू शर्मा
1 . रात की कालिमा कुछ अधिक गहरी थी, डूबी थी सारी दिशाएँ आर्तनाद में, चक्कर लगा रही थी सब उलटबाँसियाँ, चिंता में होने लगी थी तानाशाहों की बैठकें, बढ़ने लगा था व्यवस्था का रक्तचाप, घोषित कर दिया जाना था कर्फ्यू, एक स्त्री आज जाग गई है… 2 . कोने में सर जोड़े खड़े थे… Continue reading एक स्त्री आज जाग गई है / अंजू शर्मा
अच्छे दिन आने वाले हैं / अंजू शर्मा
बेमौसम बरसात का असर है या आँधी के थपेड़ों की दहशत उसकी उदासी के मंजर दिल कचोटते हैं मेरे घर के सामने का वह पेड़ जिसकी उम्र और इस देश के संविधान की उम्र में कोई फर्क नहीं है आज खौफजदा है मायूसी से देखता है लगातार झड़ते पत्तों को छाँट दी गई उन बाँहों… Continue reading अच्छे दिन आने वाले हैं / अंजू शर्मा
तुम हो ना / अंजू शर्मा
यादों के झरोखे से सिमट आया है चाँद मेरे आँचल में, दुलराता सहेजता अपनी चांदनी को, एक श्वेत कण बिखेरता अनगिनित रश्मियाँ दूधिया उजाला दूर कर रहा है हृदय के समस्त कोनो का अँधेरा, देख पा रही हूँ मैं खुदको, एक नयी रौशनी से नहाई मेरी आत्मा सिंगर रही है, महकती बयार में, बंद आँखों… Continue reading तुम हो ना / अंजू शर्मा
चांदनी / अंजू शर्मा
ये शाम ये तन्हाई, हो रही है गगन में दिवस की विदाई, जैसे ही शाम आई, मुझे याद आ गए तुम हवा में तैरती खुशबू अनजानी सी, कभी लगती पहचानी सी, कभी कहती एक कहानी सी, मैं सुनने का प्रयत्न करती हूँ और मुझे याद आ गए तुम… उतर आया है चाँद गगन में, मानो… Continue reading चांदनी / अंजू शर्मा
दुष्यंत की अंगूठी / अंजू शर्मा
प्रिय, हर संबोधन जाने क्यूँ बासी सा लगता है मुझे, सदा मौन से ही संबोधित किया है तुम्हे, किन्तु मेरे मौन और तुम्हारी प्रतिक्रिया के बीच ये जो व्यस्तता के पर्वत है बढती जाती है रोज़ इनकी ऊंचाई, जिन्हें मैं रोज़ पोंछती हूँ इस उम्मीद के साथ कि किसी रोज़ इनके किसी अरण्य में शकुंतला… Continue reading दुष्यंत की अंगूठी / अंजू शर्मा
मुक्ति / अंजू शर्मा
जाओ… मैं सौंपती हूँ तुम्हें उन बंजारन हवाओं को जो छूती हैं मेरी दहलीज और चल देती हैं तुम्हारे शहर की ओर बनने संगिनी एक रफ़्तार के सौदागर मैं सौंपती हूँ तुम्हे उस छत को जिसकी मुंडेर भीगी है तुम्हारे आंसुओं से, जो कभी तुमने मेरी याद में बहाए थे, तुम्हारे आँगन में उग रहे… Continue reading मुक्ति / अंजू शर्मा
बड़े लोग / अंजू शर्मा
वे बड़े थे, बहुत बड़े, वे बहुत ज्ञानी थे, बड़े होने के लिए जरूरी हैं कितनी सीढियाँ वे गिनती जानते थे, वे केवल बड़े बनने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें बखूबी आता था बड़े बने रहने का भी हुनर, वे सिद्धहस्त थे आंकने में अनुमानित मूल्य इस समीकरण का, कि कितना नीचे गिरने पर कोई… Continue reading बड़े लोग / अंजू शर्मा
प्रेम कविता / अंजू शर्मा
ये सच है तमाम कोशिशों के बावजूद कि मैंने नहीं लिखी है एक भी प्रेम कविता बस लिखा है राशन के बिल के साथ साथ बिताये लम्हों का हिसाब, लिखी हैं डायरी में दवाइयों के साथ, तमाम असहमतियों की भी एक्सपायरी डेट लिखे हैं कुछ मासूम झूठ और कुछ सहमे हुए सच एकाध बेईमानी और… Continue reading प्रेम कविता / अंजू शर्मा