टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें बुझते हुए ख़याल को ज़ंजीर क्या करें अंधा सफ़र है ज़ीस्त किस छोड़ दें कहाँ उलझा हुआ सा ख़्वाब है ताबीर क्या करें सीने में जज़्ब कितने समुंदर हुए मगर आँखों पे इख़्तिसार की तदबीर क्या करें बस ये हुआ कि रास्ता चुप-चाप कट गया इतनी सी वारदात… Continue reading टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें / अकरम नक़्क़ाश
Category: Akram Nakkash
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में / अकरम नक़्क़ाश
कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में लेकिन कोई सुराग़ नहीं है गिरफ़्त में कुछ दख़्ल इख़्तियार को हो बूद-ओ-हस्त में सर कर लूँ ये जहान-ए-आलम एक जस्त में अब वादी-ए-बदन में कोई बोलता नहीं सुनता हूँ आप अपनी सदा बाज़-गश्त में रूख़ है मिरे सफ़र का अलग तेरी सम्त और इक सू-ए-मुर्ग़-ज़ार चले… Continue reading कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में / अकरम नक़्क़ाश
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे / अकरम नक़्क़ाश
हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे सहरा किया कभी कभी दरिया किया मुझे कुछ तो इनायतें हैं मिरे कारसाज़ की और कुछ मिरे मिज़ाज ने तन्हा किया मुझे पथरा गई है आँख बदन बोलता नहीं जाने किस इंतिज़ार ने ऐसा किया मुझे तू तो सज़ा के ख़ौफ़ से आज़ाद था मगर मेरी निगाह से… Continue reading हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे / अकरम नक़्क़ाश
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा / अकरम नक़्क़ाश
ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा तिरे इंकार जब चुनता रहूँगा कभी सोचा नहीं था मैं तिरे बिन यूँ ज़ेर-ए-आसमाँ तन्हा रहूँगा तु कोई अक्स मुझ में ढूँढना मत मैं शीशा हूँ फ़क़त शीशा रहूँगा ताअफ़्फ़ुन-ज़ार होती महफ़िलों में ख़याल-ए-यार से महका रहूँगा जियूँगा मैं तिरी साँसों में जब तक ख़ुद अपनी साँस में ज़िंदा रहूँगा गली… Continue reading ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा / अकरम नक़्क़ाश
ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर / अकरम नक़्क़ाश
ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर आँखों में फिर वो प्यास वही इंतिज़ार फिर रख्खूँ कहाँ पे पाँव बढ़ाऊँ किधर क़दम रख़्श-ए-ख़याल आज है बे-इख़्तियार फिर दस्त-ए-जुनूँ-ओ-पंजा-ए-वहशत चिहार-सम्त बे-बर्ग-ओ-बार होने लगी है बहार फिर पस्पाइयों ने गाड़ दिए दाँत पुश्त पर यूँ दामन-ए-ग़ुरूर हुआ तार तार फिर निश्तर तिरी ज़बाँ ही नहीं ख़ामशी भी है कुछ… Continue reading ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर / अकरम नक़्क़ाश