तुम कहां हो / घनश्याम चन्द्र गुप्त

तुम कहां हो तुम कहां हो खो गये क्या तुम पराये हो गये क्या तुम तुम्हारी याद में मैंने बहुत आँसू बहाये तुम न आये तुम कहां हो ढूंढती हूँ मैं तुम्हें हर फूल में, हर पात में सौन्दर्य के प्रतिनिधि सुकोमल गात में पर तुम नहीं हो दृष्टिगोचर सांध्यदीपित गेह में तुम खो गये… Continue reading तुम कहां हो / घनश्याम चन्द्र गुप्त

आज दिल के उदास कागज़ पर / घनश्याम चन्द्र गुप्त

आज दिल के उदास कागज़ पर आज दिल के उदास कागज़ पर एक मज़बूर लेखनी स्थिर है एक नुक़्ते पे टिक गई किस्मत कह रही है उदास कागज़ से भाग्य-रेखा नहीं खिंचेगी अब मुस्कुराहट नहीं दिखेगी अब एक चेहरा उभर रहा था जो फिर से कागज़ में डूब जाता है रात-दिन एक ही फसाने से… Continue reading आज दिल के उदास कागज़ पर / घनश्याम चन्द्र गुप्त

भरी बज़्म में मीठी झिड़की / घनश्याम चन्द्र गुप्त

हर दाने पर मोहर लगी है किसने किसका खाया रे फिर भी उसका हक बनता है जिसने इसे उगाया रे अपना सब कुछ देकर उसको हमने दामन फैलाया वो छू दे तो लोग कहेंगे इसने सब कुछ पाया रे एक दरीचा, एक तबस्सुम, एक झलक चिलमन की ओट हुस्ने-ज़ियारत के सदके से सारा जग मुस्काया… Continue reading भरी बज़्म में मीठी झिड़की / घनश्याम चन्द्र गुप्त

मुझे आपसे प्यार नहीं है / घनश्याम चन्द्र गुप्त

मुझे आपसे प्यार नहीं है मुझे आपसे प्यार नहीं है साड़ी छोड़ चढ़ाई तुमने पहले तो कमीज़-सलवार ऐसा लगा छोड़ कर बेलन ली हो हाथों में तलवार इतने पर भी मैंने अपनी छाती पर चट्टान रखी लेकिन पैंट, बीच की बिकिनी, मिनी-स्कर्ट के तीखे वार सह न सका तो गरजा, देवी! मुझको यह स्वीकार नहीं… Continue reading मुझे आपसे प्यार नहीं है / घनश्याम चन्द्र गुप्त

मुझे आपसे प्यार हो गया / घनश्याम चन्द्र गुप्त

मुझे आप से प्यार हो गया मुझे आप से प्यार हो गया एक नहीं, दो बार हो गया पहली बार हुआ था तब जब हमने ली थी चाट-पकौड़ी तुमने मेरे दोने में से आधी पूरी, एक कचौड़ी, एक इमरती, आधा लड्डू, आलू छोड़ समोसा सारा, कुल्फी का कुल्हड़, इकलौता रसगुल्ला औ’ शक्करपारा लेकर जतलाया था… Continue reading मुझे आपसे प्यार हो गया / घनश्याम चन्द्र गुप्त

अर्द्ध-उन्मीलित नयन / घनश्याम चन्द्र गुप्त

अर्द्ध-उन्मीलित नयन, स्वप्निल, प्रहर भर रात रहते अधर कम्पित, संकुचित, मानो अधूरी बात कहते बात रहती है अधूरी आस रहती है अधूरी श्वास पूरे, पर अधूरी प्यास रहती है अधूरी इस अधूरी प्यास को ही स्वप्न की सौगात कहते अधर कम्पित, संकुचित, मानो अधूरी बात कहते स्वप्न की परतें खुलीं तो सत्य के समकक्ष पाया… Continue reading अर्द्ध-उन्मीलित नयन / घनश्याम चन्द्र गुप्त

समोसे / घनश्याम चन्द्र गुप्त

बहुत बढ़ाते प्यार समोसे खा लो, खा लो यार समोसे ये स्वादिष्ट बने हैं क्योंकि माँ ने इनका आटा गूंधा जिसमें कुछ अजवायन भी है असली घी का मोयन भी है चम्मच भर मेथी है चोखी जिसकी है तासीर अनोखी मूंगफली, काजू, मेवा है मन भर प्यार और सेवा है आलू इसमें निरे नहीं हैं… Continue reading समोसे / घनश्याम चन्द्र गुप्त

तुम असीम / घनश्याम चन्द्र गुप्त

रूप तुम्हारा, गंध तुम्हारी, मेरा तो बस स्पर्श मात्र है लक्ष्य तुम्हारा, प्राप्ति तुम्हारी, मेरा तो संघर्ष मात्र है तुम असीम, मैं क्षुद्र बिन्दु सा, तुम चिरजीवी, मैं क्षणभंगुर तुम अनन्त हो, मैं सीमित हूँ, वट समान तुम, मैं नव अंकुर तुम अगाध गंभीर सिन्धु हो, मैं चँचल सी नन्हीं धारा तुम में विलय कोटि… Continue reading तुम असीम / घनश्याम चन्द्र गुप्त

घड़ी की सुईयां/ घनश्याम चन्द्र गुप्त

घड़ी की सुईयां निर्विकार चलती हैं न तुमसे कुछ प्रयोजन, न मुझसे श्वासों का क्रम गिनती पूरी होने तक निर्बाध याम पर याम, याम पर याम महाकाल की ओर इंगित करती हैं सुईयां घड़ी की