अजहूँ न निकसे प्रान कठोर . दरसन बिना बहुत दिन बीते सुंदर प्रीतम मोर. चारि पहर चारों जुग बीते रैनि गंवाई भोर . अवधि गई अजहूँ नहिं आए कतहुँ रहे चितचोर. कबहूँ नैन निरखि नहिं देखे मारग चितवत तोर. दादू ऐसे आतुर बिरहिनि जैसे चन्द चकोर.
Category: Dadu Dayal
दोहे / दादू दयाल
दादू दीया है भला, दिया करो सब कोय। घर में धरा न पाइए, जो कर दिया न होय। दादू इस संसार मैं, ये द्वै रतन अमोल। इक साईं इक संतजन, इनका मोल न तोल॥ हिन्दू लागे देहुरा, मूसलमान मसीति। हम लागे एक अलख सौं, सदा निरंतर प्रीति॥ मेरा बैरी ‘मैं मुवा, मुझे न मारै कोई।… Continue reading दोहे / दादू दयाल