राम नाम जगसार और सब झुठे बेपार। तप करु तूरी, ज्ञान तराजू, मन करु तौलनिहार। षटधारी डोरी तैहि लागे, पाँच पचीस पेकार। सत्त पसेरी, सेर करहु नर, कोठी संत समाज। रकम नरायन राम खरीदहुँ, बोझहुँ, तनक जहाज। बेचहुँ विषय विषम बिनु कौड़ी, धर्म करहु शोभकार। मंदिर धीर, विवेक बिछौना, नीति पसार बजार। ऐसो सुघर सौदागर… Continue reading राम नाम जगसार और सब झुठे बेपार / छत्रनाथ
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जय, देवि, दुर्गे, दनुज गंजनि / छत्रनाथ
जय, देवि, दुर्गे, दनुज गंजनि, भक्त-जन-भव-भार-भंजनि, अरुण गति अति नैन खंजनि, जय निरंजनि हे। जय, घोर मुख-रद विकट पाँती, नव-जलद-तन, रुचिर काँती, मारु कर गहि सूल, काँती, असुर-छाती हे। जय, सिंह चढ़ि कत समर धँसि-धँसि, विकट मुख विकराल हँसि-हँसि, शुंभ कच गहि कएल कर बसि, मासु गहि असि हे। जय अमर अरि सिर काटु छट्… Continue reading जय, देवि, दुर्गे, दनुज गंजनि / छत्रनाथ