भीष्म नहीं चाहते थे परिवार का बिखराव कृष्ण नहीं चाहते थे एक युग की समप्ति धृतराष्ट्र नहीं चाहते थे राज-पतन द्रौपदी नहीं चाहती थी- चीर हरण। इसके बावजूद वह सब हुआ जो नहीं होना था आज हमारा न चाहना हमारी चुप्पी में चाहने की स्वीकृति ही तो है तालियों से झर रही है शर्म उतर… Continue reading आश्चर्य / छगनलाल सोनी
Category: Chhaganlal Soni
माँ / छगनलाल सोनी
माँ तुम्हें पढ़कर तुम्हारी उँगली की धर कलम गढ़ना चाहता हूँ तुम सी ही कोई कृति तुम्हारे हृदय के विराट विस्तार में पसरकर सोचता हूँ मैं और खो जाता हूँ कल्पना लोक में फिर भी सम्भव नहीं तुम्हें रचना शब्दों का आकाश छोटा पड़ जाता है हर बार तुम्हारी माप से माँ तुम धरती हो।