कागज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया इक और मर्तबे पे मुझे रख दिया गया इक बे-बदन का अक्स बनाया गया हूँ मैं बे-आब आईने पे मुझे रख दिया गया कुछ तो खिंची खिंची सी थी साअत विसाल की कुछ यूँ भी फ़ासले पे मुझे रख दिया गया मुँह-माँगे दाम दे के ख़रीदा… Continue reading कागज़ था मैं दिए पे मुझे रख दिया गया / अंजुम सलीमी
Author: poets
जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ / अंजुम सलीमी
जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ जा निकलता हूँ किसी और ज़माने की तरफ़ आँख बे-दार हुई कैसी ये पेशानी पर कैसा दरवाज़ा खुला आईना-ख़ाने की तरफ़ ख़ुद ही अंजाम निकल आएगा इस वाक़िए से एक किरदार रवाना है फ़साने की तरफ़ हल निकलता है यही रिश्तों की मिस्मारी का लोग आ जाते… Continue reading जस्त भरता हुआ दुनिया के दहाने की तरफ़ / अंजुम सलीमी
इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया / अंजुम सलीमी
इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया ये सफ़र भी मेरा राएगाँ रह गया हो गए अपने जिस्मों से भी बे-नियाज़ और फिर भी कोई दरमियाँ रह गया राख पोरों से झड़ती गई उम्र की साँस की नालियों में धुआँ रह गया अब तो रस्ता बताने पे मामूर हूँ बे-हदफ़ तीर था बे-कमाँ रह… Continue reading इस से आगे तो बस ला-मकाँ रह गया / अंजुम सलीमी
इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे / अंजुम सलीमी
इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे इश्क़ भी जैसे कोई ज़ेहनी सहूलत है मुझे मैं ने तुझ पर तेरे हिज्राँ को मुक़द्दम जाना तेरी जानिब से किसी रंज की हसरत है मुझे ख़ुद को समझाऊँ के दुनिया की ख़बर-गीरी करूँ इस मोहब्बत में कोई एक मुसीबत है मुझे दिल नहीं रखता किसी… Continue reading इन दिनों ख़ुद से फ़राग़त ही फ़राग़त है मुझे / अंजुम सलीमी
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ / अंजुम सलीमी
दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ बे-कार कर सफ़र में कोई काम कर के आऊँ बे-मोल कर गईं मुझे घर की ज़रूरतें अब अपने आप को कहाँ नीलाम कर के आऊँ मैं अपने शोर ओ शर से किसी रोज़ भाग कर इक और जिस्म में कहीं आराम कर के आऊँ कुछ… Continue reading दिन ले के जाऊँ साथ उसे शाम कर के आऊँ / अंजुम सलीमी
दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया / अंजुम सलीमी
दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया दिल बुझने लगा था सो नज़ारे से उठाया बे-जान पड़ा देखता रहता था मैं उस को इक रोज़ मुझे उस ने इशारे से उठाया इक लहर मुझे खींच के ले आई भँवर में वो लहर जिसे मैं ने किनारे से उठाया घर में कहीं गुंजाइश-ए-दर ही नहीं रक्खी… Continue reading दीवार पे रक्खा तो सितारे से उठाया / अंजुम सलीमी
दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता / अंजुम सलीमी
दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता इश्क़ में बाबा एक जनम से काम नहीं चल सकता बहुत दिनों से मुझ से है कैफ़ियत रोज़े वाली दर्द-ए-फ़रावाँ सीने में कोहराम नहीं चल सकता तोहमत-ए-इश्क़ मुनासिब है और हम पर जचती है हम ऐसों पर और कोई इल्ज़ाम नहीं चल सकता चम चम करते हुस्न… Continue reading दर्द-ए-विरासत पा लेने से नाम नहीं चल सकता / अंजुम सलीमी
चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ / अंजुम सलीमी
चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ मैं ख़ाली हाथ ख़ज़ानों की सैर करता हुआ पुकारता है कोई डूबता हुआ साया लरज़ते आईना-ख़ानों की सैर करता हुआ बहुत उदास लगा आज ज़र्द-रू महताब गली के बंद मकानों की सैर करता हुआ मैं ख़ुद को अपनी हथेली पे ले के फिरता रहा ख़तर के सुर्ख़… Continue reading चला हवस के जहानों की सैर करता हुआ / अंजुम सलीमी
बुझने दे सब दिए मुझे तनहाई चाहिए / अंजुम सलीमी
बुझने दे सब दिए मुझे तनहाई चाहिए कुछ देर के लिए मुझे तनहाई चाहिए कुछ ग़म कशीद करने हैं अपने वजूद से जा ग़म के साथिए मुझे तनहाई चाहिए उकता गया हूँ ख़ुद से अगर मैं तो क्या हुआ ये भी तो देखिए मुझे तनहाई चाहिए इक रोज़ ख़ुद से मिलना है अपने ख़ुमार में… Continue reading बुझने दे सब दिए मुझे तनहाई चाहिए / अंजुम सलीमी
अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ / अंजुम सलीमी
अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ पर निकल आते हैं परवाज़ भी कर लेता हूँ तुझ से ये कैसा तअल्लुक़ है जिसे जब चाहूँ ख़त्म कर देता हूँ आग़ाज़ भी कर लेता हूँ गुम्बद-ए-ज़ात में जब गूँजने लगता हूँ बहुत ख़ामोशी तोड़ के आवाज़ भी कर लेता हूँ यूँ तो इस… Continue reading अच्छे मौसम में तग ओ ताज़ भी कर लेता हूँ / अंजुम सलीमी