कभी कभी किसी शाम को, दिल क्यों इतना तनहा होता है कि भीड़ का हर ठहाका कर देता है कुछ और अकेला, और चाँद जो देखता है सब पर चुप रहता है, क्यों नहीं बन जाता उस टेबल का पेपरवेट जहाँ जिंदगी की किताब के पन्ने उलटती जाती है, वक़्त की आंधी, या क्यों नहीं… Continue reading चाँद / अंजू शर्मा
Author: poets
लड़की / अंजू शर्मा
एक दिन समटते हुए अपने खालीपन को मैंने ढूँढा था उस लड़की को, जो भागती थी तितलियों के पीछे सँभालते हुए अपने दुपट्टे को फिर खो जाया करती थी किताबों के पीछे, गुनगुनाते हुए ग़ालिब की कोई ग़ज़ल अक्सर मिल जाती थी वो लाईब्ररी में, कभी पाई जाती थी घर के बरामदे में बतियाते हुए… Continue reading लड़की / अंजू शर्मा
आग और पानी / अंजू शर्मा
कहा था किसी ने मुझे कि आग और पानी का कभी मेल नहीं होता सुनो मैंने इसे झूठ कर दिखाया है, तुम्हारे साथ रहने की ये प्रबल उत्कंठा, परे है सब समीकरणों से, और अनभिज्ञ है, किसी भी रासायनिक या भौतिक प्रक्रिया से, हर बार तुम्हारे मिथ्या दंभ की आग में बर्फ सी जली हूँ… Continue reading आग और पानी / अंजू शर्मा
बड़े बाबू / अंजू शर्मा
बड़े बाबू आज रिटायर हो गए, सदा अंकों से घिरे रहने वाले बड़े बाबू, तमाम उम्र गिनती में निकल गयी, आज भी कुछ गिन रहे हैं…… गिन रहे हैं जवान बेटी के बढ़ते साल, एक न्यूनतम सुविधाओं पर जीती आई पत्नी के चेहरे की बढती झुर्रियां, उसकी मौन शिकायतें, बेरोजगार बेटे की नाकाम डिग्रियां, और… Continue reading बड़े बाबू / अंजू शर्मा
विलुप्त प्रजाति / अंजू शर्मा
ओ नादान स्त्री, सुन रही हो खामोश, दबी आहट उस प्रचंड चक्रवात की बेमिसाल है जिसकी मारक क्षमता, जो बढ़ रहा तुम्हारी ओर मिटाते हुए तुम्हारे नामोनिशान, जानती हो गुम हो जाती हैं समूची सभ्यताएं ओर कैलंडर पर बदलती है सिर्फ तारीख, क्या बहाए थे आंसू किसी ने मेसोपोटामिया के लिए या सिसका था कोई… Continue reading विलुप्त प्रजाति / अंजू शर्मा
आत्मा / अंजू शर्मा
मैं सिर्फ एक देह नहीं हूँ, देह के पिंजरे में कैद एक मुक्ति की कामना में लीन आत्मा हूँ, नृत्यरत हूँ निरंतर, बांधे हुए सलीके के घुँघरू, लौटा सकती हूँ मैं अब देवदूत को भी मेरे स्वर्ग की रचना मैं खुद करुँगी, मैं बेअसर हूँ किसी भी परिवर्तन से, उम्र के साथ कल पिंजरा तब्दील… Continue reading आत्मा / अंजू शर्मा
ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ / अंजुम सलीमी
ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ अभी मैं अपने हिजाबात में पड़ा हुआ हूँ मुझे यक़ीं ही नहीं आ रहा के ये मैं हूँ अजब तवहहुम ओ शुबहात में पड़ा हुआ हूँ गुज़र रही है मुझे रौंदती हुई दुनिया क़दीम ओ कोहना रवायात में पड़ा हुआ हूँ बचाव का कोई रस्ता नहीं बचा मुझ में मैं… Continue reading ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ / अंजुम सलीमी
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी / अंजुम सलीमी
मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी जो खुल गई कभी मुझ पर मुनफ़िक़त अपनी मैं ख़ुद से मिल के कभी साफ़ साफ़ कह दूँगा मुझे पसंद नहीं है मुदाख़ेलत अपनी मैं शर्म-सार हुआ अपने आप से फिर भी क़ुबूल की ही नहीं मैं ने माज़रत अपनी ज़माने से तो मेरा कुछ गिला नहीं बनता के… Continue reading मुझे भी सहनी पड़ेगी मुख़ालिफ़त अपनी / अंजुम सलीमी
ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है / अंजुम सलीमी
ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है मैं ने इक शख़्स से उज्रत पे मोहब्बत की है ख़ुद को धुत्कार दिया मैं ने तो इस दुनिया ने मेरी औक़ात से बढ़ कर मेरी इज़्ज़त की है जी में आता है मेरी मुझ से मुलाक़ात न हो बात मिलने की नहीं बात तबीअत की… Continue reading ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है / अंजुम सलीमी
कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की / अंजुम सलीमी
कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की सारी हसरत निकल गई मेरी तन-आसानी की पड़ा हुआ हूँ शाम से मैं उसी बाग़-ए-ताज़ा में मुझ में शाख निकल आई है रात की रानी की इस चौपाल के पास इक बूढ़ा बरगद होता था एक अलामत गुम है यहाँ से मेरी कहानी की तुम… Continue reading कल तो तेरे ख़्वाबों ने मुझ पर यूँ अर्ज़ानी की / अंजुम सलीमी