चांदनी / अंजू शर्मा

ये शाम ये तन्हाई, हो रही है गगन में दिवस की विदाई, जैसे ही शाम आई, मुझे याद आ गए तुम हवा में तैरती खुशबू अनजानी सी, कभी लगती पहचानी सी, कभी कहती एक कहानी सी, मैं सुनने का प्रयत्न करती हूँ और मुझे याद आ गए तुम… उतर आया है चाँद गगन में, मानो… Continue reading चांदनी / अंजू शर्मा

दुष्यंत की अंगूठी / अंजू शर्मा

प्रिय, हर संबोधन जाने क्यूँ बासी सा लगता है मुझे, सदा मौन से ही संबोधित किया है तुम्हे, किन्तु मेरे मौन और तुम्हारी प्रतिक्रिया के बीच ये जो व्यस्तता के पर्वत है बढती जाती है रोज़ इनकी ऊंचाई, जिन्हें मैं रोज़ पोंछती हूँ इस उम्मीद के साथ कि किसी रोज़ इनके किसी अरण्य में शकुंतला… Continue reading दुष्यंत की अंगूठी / अंजू शर्मा

मुक्ति / अंजू शर्मा

जाओ… मैं सौंपती हूँ तुम्हें उन बंजारन हवाओं को जो छूती हैं मेरी दहलीज और चल देती हैं तुम्हारे शहर की ओर बनने संगिनी एक रफ़्तार के सौदागर मैं सौंपती हूँ तुम्हे उस छत को जिसकी मुंडेर भीगी है तुम्हारे आंसुओं से, जो कभी तुमने मेरी याद में बहाए थे, तुम्हारे आँगन में उग रहे… Continue reading मुक्ति / अंजू शर्मा

बड़े लोग / अंजू शर्मा

वे बड़े थे, बहुत बड़े, वे बहुत ज्ञानी थे, बड़े होने के लिए जरूरी हैं कितनी सीढियाँ वे गिनती जानते थे, वे केवल बड़े बनने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें बखूबी आता था बड़े बने रहने का भी हुनर, वे सिद्धहस्त थे आंकने में अनुमानित मूल्य इस समीकरण का, कि कितना नीचे गिरने पर कोई… Continue reading बड़े लोग / अंजू शर्मा

प्रेम कविता / अंजू शर्मा

ये सच है तमाम कोशिशों के बावजूद कि मैंने नहीं लिखी है एक भी प्रेम कविता बस लिखा है राशन के बिल के साथ साथ बिताये लम्हों का हिसाब, लिखी हैं डायरी में दवाइयों के साथ, तमाम असहमतियों की भी एक्सपायरी डेट लिखे हैं कुछ मासूम झूठ और कुछ सहमे हुए सच एकाध बेईमानी और… Continue reading प्रेम कविता / अंजू शर्मा

बेटी के लिए / अंजू शर्मा

दर्द के तपते माथे पर शीतल ठंडक सी मेरी बेटी मैं ओढा देना चाहती हूँ तुम्हे अपने अनुभवों की चादर माथे पर देते हुए एक स्नेहिल बोसा मैं चुपके से थमा देती हूँ तुम्हारे हाथ में कुछ चेतावनियों भरी पर्चियां, साथ ही कर देना चाहती हूँ आगाह गिरगिटों की आहट से तुम जानती हो मेरे… Continue reading बेटी के लिए / अंजू शर्मा

मुआवजा / अंजू शर्मा

कविता के बदले मुआवज़े का अगर चलन हो तो संभव है मैं मांग बैठूं मधुमक्खियों से ताज़ा शहद कि भिगो सकूँ कुछ शब्दों को इसमें, ताकि विदा कर सकूँ कविताओं से कम-से -कम थोड़ी सी तो तल्खी, या मैं मांग सकती हूँ कुछ नए शब्द भी जिन्हें मैं प्रयोग कर सकूँ, अपनी कविताओं में दुःख,… Continue reading मुआवजा / अंजू शर्मा

साल 1984 / अंजू शर्मा

कुछ तारीखें, कुछ साल अंकित हो जाते हैं आपकी स्मृति में, ठीक उसी तरह जैसे महिलाएं याद रखा करती थीं बच्चों के जन्म की तारीख, सालों के माध्यम से, बडकी जन्मी थी जिस साल पाकिस्तान से हुई थी लड़ाई, लगत पूस की तीज को, या मुन्नू जन्मा था जिस साल इंदिरा ने लगायी थी इमरजेंसी… Continue reading साल 1984 / अंजू शर्मा

स्वीकारोक्ति / अंजू शर्मा

इन दिनो मैं कम लिखती हूँ तमाम बेचैन रातों और करवटों के मुसलसल सिलसिले के बावजूद मेरे लिए सुकून का मसला रहा है कविताओं का कम और कमतर होते जाना हो सकता है गैर-मामूली हो ये बयान कि मैं इंतज़ार में हूँ कुछ लिखी गयी कविताओं के खो जाने के…

सीख / अंजू शर्मा

पिता सिखा रहे थे अच्छे और बुरे की तमीज, उसने सीखा अच्छाई के मुकाबले बुराई बहुत जल्दी समूह में बदल जाती है…