महाजे़-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है / अकील नोमानी

महाजे़-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है मैं जिन लोगों को खुद से मुख्तलिफ महसूस करता हूँ मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है

एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती / अकील नोमानी

एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती इक उम्र हुई, दिल की लगी कम नही होती लगता है कहीं प्यार में थोड़ी-सी कमी थी और प्यार में थोड़ी-सी कमी कम नहीं होती अक्सर ये मेरा ज़ह्न भी थक जाता है लेकिन रफ़्तार ख़यालों की कभी कम नहीं होती था ज़ह्र को होंठों से लगाना… Continue reading एहसास में शिद्दत है वही, कम नहीं होती / अकील नोमानी

जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे / अकील नोमानी

जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे कभी तनहाइयों को तेरी महफ़िल, हम भी कहते थे हमें भी तजरिबा है कुफ्र की दुनिया में रहने का बुतों के सामने अपने मसाइल हम भी कहते थे यहाँ इक भीड़ अंजाने में दिन कहती थी रातों को उसी इक भीड़ में हम भी थे… Continue reading जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे / अकील नोमानी

हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है / अकील नोमानी

हर शाम सँवरने का मज़ा अपनी जगह है हर रात बिखरने का मज़ा अपनी जगह है खिलते हुए फूलों की मुहब्बत के सफ़र में काँटों से गुज़रने का मज़ा अपनी जगह है अल्लाह बहुत रहमों-करम वाला है लेकिन लेकिन अल्लाह से ड़रने का मजा अपनी जगह है

महाजे़-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है / अकील नोमानी

महाजे़-जंग पर अक्सर बहुत कुछ खोना पड़ता है किसी पत्थर से टकराने को पत्थर होना पड़ता है अभी तक नींद से पूरी तरह रिश्ता नहीं टूटा अभी आँखों को कुछ ख़्वाबों की खातिर सोना पड़ता है मैं जिन लोगों को खुद से मुख्तलिफ महसूस करता हूँ मुझे अक्सर उन्हीं लोगों में शामिल होना पड़ता है

टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें / अकरम नक़्क़ाश

टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें बुझते हुए ख़याल को ज़ंजीर क्या करें अंधा सफ़र है ज़ीस्त किस छोड़ दें कहाँ उलझा हुआ सा ख़्वाब है ताबीर क्या करें सीने में जज़्ब कितने समुंदर हुए मगर आँखों पे इख़्तिसार की तदबीर क्या करें बस ये हुआ कि रास्ता चुप-चाप कट गया इतनी सी वारदात… Continue reading टूटी हुई शबीह की तस्ख़ीर क्या करें / अकरम नक़्क़ाश

कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में / अकरम नक़्क़ाश

कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में लेकिन कोई सुराग़ नहीं है गिरफ़्त में कुछ दख़्ल इख़्तियार को हो बूद-ओ-हस्त में सर कर लूँ ये जहान-ए-आलम एक जस्त में अब वादी-ए-बदन में कोई बोलता नहीं सुनता हूँ आप अपनी सदा बाज़-गश्त में रूख़ है मिरे सफ़र का अलग तेरी सम्त और इक सू-ए-मुर्ग़-ज़ार चले… Continue reading कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में / अकरम नक़्क़ाश

हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे / अकरम नक़्क़ाश

हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे सहरा किया कभी कभी दरिया किया मुझे कुछ तो इनायतें हैं मिरे कारसाज़ की और कुछ मिरे मिज़ाज ने तन्हा किया मुझे पथरा गई है आँख बदन बोलता नहीं जाने किस इंतिज़ार ने ऐसा किया मुझे तू तो सज़ा के ख़ौफ़ से आज़ाद था मगर मेरी निगाह से… Continue reading हैरत से देखता हुआ चेहरा किया मुझे / अकरम नक़्क़ाश

ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा / अकरम नक़्क़ाश

ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा तिरे इंकार जब चुनता रहूँगा कभी सोचा नहीं था मैं तिरे बिन यूँ ज़ेर-ए-आसमाँ तन्हा रहूँगा तु कोई अक्स मुझ में ढूँढना मत मैं शीशा हूँ फ़क़त शीशा रहूँगा ताअफ़्फ़ुन-ज़ार होती महफ़िलों में ख़याल-ए-यार से महका रहूँगा जियूँगा मैं तिरी साँसों में जब तक ख़ुद अपनी साँस में ज़िंदा रहूँगा गली… Continue reading ब-रंग-ए-ख़्वाब मैं बिखरा रहूँगा / अकरम नक़्क़ाश

ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर / अकरम नक़्क़ाश

ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर आँखों में फिर वो प्यास वही इंतिज़ार फिर रख्खूँ कहाँ पे पाँव बढ़ाऊँ किधर क़दम रख़्श-ए-ख़याल आज है बे-इख़्तियार फिर दस्त-ए-जुनूँ-ओ-पंजा-ए-वहशत चिहार-सम्त बे-बर्ग-ओ-बार होने लगी है बहार फिर पस्पाइयों ने गाड़ दिए दाँत पुश्त पर यूँ दामन-ए-ग़ुरूर हुआ तार तार फिर निश्तर तिरी ज़बाँ ही नहीं ख़ामशी भी है कुछ… Continue reading ऐ अब्र-ए-इल्तिफ़ात तिरा ए‘तिबार फिर / अकरम नक़्क़ाश