हे मानस के सकाल / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

हे मानस के सकाल !
छाया के अन्तराल !

रवि के, शशि के प्रकाश,
अम्बर के नील भास,
शारदा घन गहन-हास,
जगती के अंशुमाल ।

मानव के रूप सुघर,
मन के अतिरेक अमर,
निःस्व विश्व के सुन्दर,
माया के तमोजाल ।

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