हस्त चिन्ह / पंकज पराशर

बनारस के घाटों को देखते हुए

पुरखों के पदचिन्ह पर चलने वालों
कभी उनके हस्तचिन्हों को देखकर चलो तो समझ सकोगे
हाथ दुनिया को कितना सुंदर बना सकते हैं

ख़ैबर दर्रा से आए धनझपटू हाथ
जब मचा रहे थे तबाही
वे बना रहे थे मुलायम सीढ़ियाँ
सुंदर-सुंदर घाट और मिला रहे थे गंगा की निर्मलता को
मन की कोमलता से

तलवारें टूट गईं
मिट्टी में मिल गए ख़ून सने हाथ
कोई जानता तक नहीं उन हाथों को
जिसके मलबे के नीचे सदियों तक दबी रही दुनिया

याद करो उन हाथों को जिन्होंने बनाए ताजमहल
बड़े-बड़े राजमहल
और पूरे बनारस में इतने सारे घाट
आज किसे है याद?

ढूँढ़ सको तो ढूँढ़ो इतिहास में उन हाथों को
जिन्होंने बेघर होकर बनाए लोगों के घर
लेकिन अफसोस! वहाँ दीखते हैं वही हाथ
जिन्होंने चंद सिक्के देकर ख़रीदे ग़रीब मजूरों के
अमीर हाथ

जान की परवाह किए बग़ैर जो उकेरते रहे
राजाओं के नाम और जूझते रहे सालों
छेनी-हथौड़ी लिए पत्थरों से
उन हाथों की लकीर किस हर्फ़ में दबी है
ज़रा उसे ढँढ़ो तो अपने मुल्क के इतिहास में?

वे जो इन सीढ़ियों से पहुँचते हैं
विद्युत अभिमंत्रित सरकाऊ सीढ़ियों तक
क्या बना सकते हैं कोई एक ऐसा घाट
जहाँ पी सकें पानी एक साथ
बकरी और बाघ?

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