सहमते स्वर-4 / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

मैं नहीं जाता
किसी के द्वार
बिना मनुहार
अथवा समय की पुकार के

अनमांगा दण्डकारण्य भी
फलता है
लंका का स्वर्ण
सिर्फ़ जलता है-
जलता है!

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