लेकिन मन आज़ाद नहीं है / गोपालदास “नीरज”

तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।

सचमुच आज काट दी हमने
जंजीरें स्वदेश के तन की
बदल दिया इतिहास बदल दी
चाल समय की चाल पवन की

देख रहा है राम राज्य का
स्वप्न आज साकेत हमारा
खूनी कफन ओढ़ लेती है
लाश मगर दशरथ के प्रण की

मानव तो हो गया आज
आज़ाद दासता बंधन से पर
मज़हब के पोथों से ईश्वर का जीवन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।

हम शोणित से सींच देश के
पतझर में बहार ले आए
खाद बना अपने तन की-
हमने नवयुग के फूल खिलाए

डाल डाल में हमने ही तो
अपनी बाहों का बल डाला
पात पात पर हमने ही तो
श्रम जल के मोती बिखराए

कैद कफस सय्यद सभी से
बुलबुल आज स्वतंत्र हमारी
ऋतुओं के बंधन से लेकिन अभी चमन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।
यद्यपि कर निर्माण रहे हम
एक नयी नगरी तारों में
सीमित किन्तु हमारी पूजा
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारों में

यद्यपि कहते आज कि हम सब
एक हमारा एक देश है
गूंज रहा है किन्तु घृणा का
तार बीन की झंकारों में

गंगा ज़मज़म के पानी में
घुली मिली ज़िन्दगी़ हमारी
मासूमों के गरम लहू से पर दामन आज़ाद नहीं है।
तन तो आज स्वतंत्रत हमारा लेकिन मन आज़ाद नहीं है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *