कई मंथराओं का मिलन– परिहास पर है
कैकयी फिर भृमित कोप में उपवास पर है
तड़फ रहे जनता के दशरथ हाथ मल रहै
देख रहै सव कि -राम अव वनवास पर है
सीता भी अव बन जाने के लिऐ भ्रमित है
आज के रावणों के चरित्र से बह चकित है
लक्ष्मण -हनुमान के चरित्र अव खो गऐ है
हॉ- बिभीषणों की भरमार स्वार्थ सहित है
अयोध्या को आतुर कई भरत बन गऐ है
कई तो आपस में लड़कर ही बिखर गऐ है
राम से मिलने- चरण पादुका चर्चा नही है
राम राज कहते सव खजाना कुतर गऐ है
प्रस्तुति – रीता
जयहिंद