मरण को जिसने वरा है / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

मरण को जिसने वरा है
उसी का जीवन भरा है
परा भी उसकी, उसी के
अंक सत्य यशोधरा है ।

सुकृत के जल से विसिंचित
कल्प-किंचित विश्व-उपवन,
उसी की निस्तन्द्र चितवन
चयन करने को हरा है ।

गिरीपताक उपत्यका पर
हरित तृण से घिरी तन्वी
जो खड़ी है वह उसी की
पुष्पभरणा अप्सरा है ।

जब हुआ वंचित जगत में
स्नेह से, आमर्ष के क्षण,
स्पर्श देती है किरण जो,
उसी की कोमल करा है ।

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