बीन वारण के वरण धन / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

बीन वारण के वरण घन,
जो बजी वर्षित तुम्हारी,
तार तनु की नाचती उतरी,
परी, अप्सरकुमारी।

लूटती रेणुओं की निधि,
देखती निज देश वारिधि,
बह चली सलिला अनवसित
ऊर्मिला, जैसे उतारी।

चतुर्दिक छन-छन, छनन-छन,
बिना नूपुर के रणन-रण,
वीचि के फिर शिखर पर,
फिर गर्त पर, फिर सुध बिसारी।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *