बन जाऊं चरणकी दासी रे / मीराबाई

बन जाऊं चरणकी दासी रे। दासी मैं भई उदासी॥ध्रु०॥
और देव कोई न जाणूं। हरिबिन भई उदासी॥१॥
नहीं न्हावूं गंगा नहीं न्हावूं जमुना। नहीं न्हावूं प्रयाग कासी॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलकी प्यासी॥३॥

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *