बन्द कूलों में / गोपालदास “नीरज”

बन्द कूलों में समुन्दर का शरीर
किन्तु सागर कूल का बन्धन नहीं है।

धूल ने सीमित को असीमित किया है
धूल ने अमरत्व मरघट को दिया है,
और सबको तो मिला जग में हलाहल
बस अकेली धूल ने अमृत पिया है
धूल सौ-सौ बार मिटकर भी न मिटती
क्योंकि उसके प्राण में धड़कन नहीं है।

बन्द कूलों में समुन्दर का शरीर
किन्तु सागर कूल का बन्धन नहीं है।

एक रवि है सौ प्रभातों का उजेरा
एक शशि है सौ निशाओं का सवेरा
एक पल निज में छिपाए कल्प लाखों
एक तृण है कोटि विहगों का बसेरा
और रजकण एक बाँधे मेरु उर में
मेरु का बन्दी मगर रजकण नहीं है।

बन्द कूलों में समुन्दर का शरीर
किन्तु सागर कूल का बन्धन नहीं है।

धूल की ऐसी सुहागिल है चुनरिया
ओढ़ जिसको हो गई विधवा उमरिया
और जिसको भूल से छू एक क्षण में
बन गई अंगार आँसू की बदरिया
धूल मंजिल, धूल पंथी, धूल पथ है
क्योंकि उसका नाश और सृजन नहीं है।

बन्द कूलों में समुन्दर का शरीर
किन्तु सागर कूल का बन्धन नहीं है।

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