प्यार पर बहुत हो चुकी कविताएँ / वंदना केंगरानी

प्यार पर बहुत हो चुकी कविताएँ
पिता की फटी बिवाइयों पर
अभी तक नहीं लिखी कविताएँ
जो रिश्ता ढूँढ़ते-ढूँढ़ते टूटने पर कसकते हैं

नहीं पढ़ी गई कविताएँ
बेटी के चेहरों की रेखाओं पर
जो- उभर आती है अपने आप असमय ही

मुझे लगता है
अब इन रेखाओं की गहराइयों पर कविताएँ लिखूँ
प्यार पर बहुत हो चुकी कविताएँ !