पत्थर जैसे मछली के कूल्हे चमके / बशीर बद्र

पत्थर जैसे मछली के कूल्हे चमके
गंगा जल में आग लगा कर चले गये

सात सितारे उड़ते घोड़ों पर आये
पल्कों से कुछ फूल चुरा कर चले गये

दीवारें, दीवारों की ज़ानिब सरकीं
छत से बिस्तर लोग उठा कर चले गये

तितली भागे तितली के पीछे-पीछे
फूल आये और फूल चुरा कर चले गये

सर्दी आई लोग पहाड़ों को भूले
पत्थर पर शीशे बिखरा कर चले गये

रात हवा के ऐसे झोंके दर आये
भरी हुई छागल छलका कर चले गये

(१९७१)

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