नाता-रिश्ता-3 / अज्ञेय

यहीं, यहीं और अभी
इस सधे सन्धि-क्षण में
इस नए जन्मे, नए जागे,
अपूर्व, अद्वितीय…अभागे
मेरे पुण्यगीत को
अपने अन्त:शून्य में ही तन्मय हो जाने दो–
यों अपने को पाने दो !

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