नहिं एसो जनम बारंबार / मीराबाई

राग हमीर

नहिं एसो जनम बारंबार॥
का जानूं कछु पुन्य प्रगटे मानुसा-अवतार।
बढ़त छिन-छिन घटत पल-पल जात न लागे बार॥
बिरछके ज्यूं पात टूटे, लगें नहीं पुनि डार।
भौसागर अति जोर कहिये अनंत ऊंड़ी धार॥
रामनाम का बांध बेड़ा उतर परले पार।
ज्ञान चोसर मंडा चोहटे सुरत पासा सार॥
साधु संत महंत ग्यानी करत चलत पुकार।
दासि मीरा लाल गिरधर जीवणा दिन च्यार॥

शब्दार्थ :- अवतार = जनम। ऊंड़ी = गहरी। चौसर = चौपड़ का खेल। च्यार = चार।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *