धान रोपती स्त्री / अक्षय उपाध्याय

क्यों नहीं गाती तुम गीत हमारे
क्यों नहीं तुम गाती

बजता है संगीत तुम्हारे पूरे शरीर से
आँखें नाचती हैं
पृथ्वी का सबसे ख़ूबसूरत
नृत्य

फिर झील-सी आँखो में
सेवार क्यों नहीं उभरते

एक नहीं कई-कई हाथ सहेजते हैं तुम्हारी आत्मा को
एक नहीं
कई-कई हृदय केवल तुम्हारे लिए धड़कते हैं
क्यों नहीं फिर तुम्हारा सीना
फूल कर पहाड़ होता

प्रेम के माथे पर डूबी हुई
तुम
धूप में अपने बाल कब सुखाओगी
कब गाओगी हमारे गीत

धान रोपती
एक स्त्री
केवल स्त्री नहीं होती

तुम वसंत हो
पूरी पृथ्वी का
तुम स्वप्न हो
पूरी पृथ्वी का
तुम्हारी बाँहों में छटपटाते हैं हम और
सूखते हैं हमारे गीत
वसंत पीते हुए इस मौसम में
क्यों नहीं गाती तुम
क्यों नहीं तुम गाती गीत हमारे ?

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *