तुम हो… / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

तुम एक सुन्दर
बियावान जंगल हो
जिसके ख़ूब भीतर
रहना चाहता हूँ मैं..
एक आदिम मनुष्य की तरह
नग्न..
भग्न..
अकेला..

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