तब याद किसी की / गोपालदास “नीरज”

तब याद किसी की आती है!

मधुकर गुन-गुन धुन सुन क्षण भर
कुछ अलसा कर, कुछ शरमा कर
जब कमल-कली धीरे-धीरे निज घूँघट-पट खिसकाती है।
तब याद किसी की आती है!

आँगन के तरू की फ़ुनगी पर
दो तिनके सजा-सजा कर धर
जब कोई चिड़िया एकाकी निज उजड़ा नीड़ बसाती है।
तब याद किसी की आती है!

हिल-डुल कर पवन-झकोरों से
जब ओस फ़ूल के अधरों पर चल-चुम्बन सी झर जाती है।
तब याद किसी की आती है!

पाकर निशि का तम, सूनापन
जब शशि की एक शरीर किरण
सोते फ़ूलों के गालों को हल्के-हल्के सहलाती है।
तब याद किसी की आती है!

उस पार उतारा करती नित
जो जग के नर-नारी अगणित
निशि को जब वही नाव सूनी इस पार पड़ी अकुलाती है।
तब याद किसी की आती है!

उन्मुक्त झरोखे से आकर
सिर, मस्तक मेरा सहलाकर
जब प्रात उषा की किरण एक सोते से मुझे जगाती है।
तब याद किसी की आती है!

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