तपी आतप से जो सित गात / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

तपी आतप से जो सित गात,
गगन गरजे घन, विद्युत पात।

पलटकर अपना पहला ओर,
बही पूर्वा छू छू कर छोर;
हुए शीकर से निश्शर कोर,
स्निग्ध शशि जैसे मुख अवदात।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *