तपन से घन, मन शयन से; / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

तपन से घन, मन शयन से,
प्रातजीवन निशि-नयन से।

प्रमद आलस से मिला है,
किरण से जलरुह किला है,
रूप शंका से सुघरतर
अदर्शित होकर खिला है,
गन्ध जैसे पवन से, शशि
रविकरों से, जन अयन से।

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