डगमगाते पाँव / गोपालदास “नीरज”

डगमगाते पाँव मेरे आज जीवन की डगर पर!

आह-सा है संकुचित पथ
बिछे काँटे, क्षीण पग-गति
तम-बिछा, आँधी घिरी, बिजली चमकती और सर पर।
डगमगाते पाँव मेरे आज जीवन की डगर पर!

सामने ज्वाला धधकती
प्राण प्यासे, श्वास रूँधती
किन्तु विष मँडरा रहा है, हाय चिर प्यासे अधर पर।
डगमगाते पाँव मेरे आज जीवन की डगर पर!

किन्तु बढ़ना ही पड़ेगा
और लड़ना ही पड़ेगा-
आग से, फ़िर क्यों ना धर लूँ आज मैं पाषाण उर पर।
डगमगाते पाँव मेरे आज जीवन की डगर पर!

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