जिनकी नहीं मानी कान / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

जिनकी नहीं मानी कान
रही उनकी भी जी की।

जोबन की आन-बान
तभी दुनिया की फीकी।
राह कभी नहीं भूली तुम्हारी,
आँख से आँख की खाई कटारी,
छोड़ी जो बाँधी अटारी-अटारी
नई रोशनी, नई तान;
रही उनकी भी जी की,
जिनकी नहीं मानी कान।

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