जब तुम चली जाओगी / घनश्याम कुमार ‘देवांश’

जब तुम चली जाओगी
तुम्हारी गली में
सूरज तब भी उगेगा
यथावत,
चाँद सही समय पर
दस्तक देना नहीं भूलेगा,
फूल खिलना नहीं छोड़ देंगे,
हवाओं में ताजगी तब भी बनी रहेगी,
बच्चे तुम्हारे घर के नीचे
वैसे ही खेलते मिला करेंगे
पड़ोस के अंकल-आंटी
ठीक पहले की तरह
झगड़ते रहेंगे,
अखबार वाला बिना नागा किये
दुनिया के न रुकने कि खबरें
बालकनी में फेंकता रहेगा,
फिर भी मैं
अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी को
खुजलाता हुआ
अपने अंतर में तुम्हारे सूखते अस्तित्व को
सींचने की कोशिश में
सालों साल बराबर लगा रहूँगा…

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