चलीं निशि में तुम, आईं प्रात / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

चलीं निशि में तुम आई प्रात;
नवल वीक्षण, नवकर सम्पात,

नूपुर के निक्वण कूजे खग,
हिले हीरकाभरण, पुष्प मग,
साँस समीरण, पुलकाकुल जग,
हिले पग जलजात।

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