गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय / मीराबाई

राग जैजैवंती

गली तो चारों बंद हुई, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।
ऊंची नीची राह लपटीली, पांव नहीं ठहराय।
सोच सोच पग धरूं जतनसे, बार बार डिग जाय॥
ऊंचा नीचा महल पियाका म्हांसूं चढ़्‌यो न जाय।
पिया दूर पंथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय॥
कोस कोस पर पहरा बैठ्या, पैंड़ पैंड़ बटमार।
है बिधना, कैसी रच दीनी दूर बसायो म्हांरो गांव॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरु दई बताय।
जुगन जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय॥

शब्दार्थ :- लपटीली =रपटीली। म्हांरौ =मेरा। झीणो =सूक्ष्म। सुरत =याद करने की शक्ति। झकोला =झोंका। पैंड़ =डग। गाम =गांव।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *