खोले अमलिन जिस दिन / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

खोले अमलिन जिस दिन,
नयन विश्वजन के
दिखी भारती की छबि,
बिके लोग धन के।

तन की छुटा गई सुरत,
रुके चरण मायामत,
रोग-शोक-लोक, वितत
उठे नये रण के।

तटिनी के तीर खड़े
खम्भे थे, वीर बड़े,
मेरु के करार चढ़े,
श्रम के यौवन के।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *