क्वाँर की बयार / अज्ञेय

इतराया यह और ज्वार का
क्वाँर की बयार चली,
शशि गगन पार हँसे न हँसे–
शेफ़ाली आँसू ढार चली !
नभ में रवहीन दीन–
बगुलों की डार चली;
मन की सब अनकही रही–
पर मैं बात हार चली !

इलाहाबाद, अक्टूबर, 1948

Published
Categorized as Agyeya

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *