कदम्ब-कालिन्दी-2 / अज्ञेय

(दूसरा वाचन)

अलस कालिन्दी– कि काँपी
टेर वंशी की
नदी के पार।
कौन दूभर भार
अपने-आप
झुक आई कदम की डार
धरा पर बरबस झरे दो फूल।

द्वार थोड़ा हिले–
झरे, झपके राधिका के नैन
अलक्षित टूट कर
दो गिरे तारक बूंद।
फिर– उसी बहती नदी का
वही सूना कूल !–
पार– धीरज-भरी
फिर वह रही वंशी टेर !

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