ऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

ऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र,
माझ मान मेघ मन्द्र ।

क्षण-क्षण विद्युत प्रकाश,
गुरु गर्जन मधुर भास,
कुज्झटिका अट्टहास,
अन्तर्दृग विनिस्तन्द्र ।

विश्व अखिल मुकुल-बन्ध
जैसे यतिहीन छन्द,
सुख की गति और मन्द,
भरे एक-एक रन्ध्र ।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *